लोककथाएं

माता सती की कहानी ? कौन थी सती माता (Mata Sati Ki Kahani)

शिव ने सती की तपस्या से खुश हो कर उन्हें दर्शन दिए और कहा की मांगो क्या चाहिए। सती बोली कि प्रभु मै आपको पति रूप मे प्राप्त करना चाहती हूँ।

हिन्दू धर्म एक ऐसा धर्म है जिसमें कई देवी-देवताओं की पूजा की जाती है। हिंदू पुराणों (Hindu Puran) के अनुसार हर देवी देवता की अलग अलग कहानी है और हमारे पुराणों में इन कहानियों का वर्णन भी मिलता है। इन्ही पुराणों में माता सती (Mata Sati) का नाम भी आता है। हमारे पुराणों में माता सती के जन्म (Mata Sati Ka Janm) से जुड़ी एक रोचक कथा का वर्णन भी मिलता है। आपको बता दे की माता सती दक्ष प्रजापति की पुत्रियों में से एक थी।

सभी पुत्रियों बहुत ही रूपवान गुणवान थे लेकिन दक्ष प्रजापति को उनसे संतोष नहीं था वे चाहते थे कि उनकी कोई एक पुत्री ऐसी हो जो सर्व शक्ति सपन्न हो।  इसके लिए राजा दक्ष ने निर्णय किया कि वह इसके लिए तपस्या करेंगे।  तपस्या करते करते कई दिन बीत गए। राजा के तप से प्रसन्न होकर मां भगवती ने उन्हें दर्शन दिए और कहा कि मैं तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न हूं। बताओ तुम्हे क्या चाहिए? इसके बाद राजा दक्ष ने अपनी इच्छा देवी माँ को बताई। देवी माँ ने कहा, मैं तुम्हारे यहां पुत्री के रूप में जन्म लूंगी और मेरा नाम सती होगा। आज Dharam Book की इस पोस्ट के माध्यम से हम जानेंगे की माता सती की क्या कहानी (Mata Sati Ki Kahani) थी, और उनकी मौत कैसे हुई ।

कौन थी सती माता (Mata Sati Kaun Thi)

माता सती राजा दक्ष की पुत्रियों में से एक थी। उन सभी पुत्रियों में से माता सती बहुत ही अलौकिक थी। अपनी बाल अवस्था से ही उन्होंने अपनी माया दिखानी शुरू कर दी थी। उनकी इन शक्तियों को देखकर उनके पिता भी विस्मय में पड़ जाते थे। 

माता सती का जन्म कैसे हुआ ? (Mata Sati Ka Janm)

राजा दक्ष प्रजापति माता दुर्गा (Durga Mata) के बहुत बड़े भक्त थे। वे निरंतर माँ दुर्गा का पाठ और तपस्या करते थे। आज बार माता दुर्गा ने उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन दिए और कहा की मैं तुम्हारी इस कठोर तपस्या से प्रसन्न हूँ और तुम्हें जो चाहिए तुम मांग सकते हो। राजा दक्ष ने कहा की “हे माँ! मैं आपको अपनी पुत्री के रूप में पाना चाहता हूँ ” उन्होंने इतना ही कहा की माँ दुर्गा ने जवाब में कह दिया तथास्तु, ऐसा ही होगा। कुछ ही दिनों बाद उनके घर में पुत्री का जन्म हुआ और वो बच्ची शुरू से ही भगवन शिव की भक्त थी।   

माता सती और शिव का विवाह (Sati Aur Shiv Ka Vivah)

धीरे धीरे जैसे जैसे समय बीतता गया माता सती की शक्तियां भी बढ़ती गई। अब उनकी विवाह की उम्र हो चुकी थी। दक्ष को उनके विवाह की चिंता होने लगी। उन्होंने स्वयं ब्रह्मा जी से इस बारे में परामर्श किया। ब्रह्मा जी ने कहा की सती देवी दुर्गा का अवतार हैं तो उनके साथ विवाह करने के लिए शिव से उचित कौन होगा। 

 माता सती ने भी तय कर रखा था की अगर उनका विवाह होगा तो भगवन शिव के साथ ही होगा (Sati Ka Vivah Shiv ke Sath)। इसके लिए वे कठोर तपस्या करने लगी। अंत में शिव ने सती की तपस्या से खुश हो कर उन्हें दर्शन दिए और कहा की मांगो क्या चाहिए। सती बोली कि प्रभु मै आपको पति रूप मे प्राप्त करना चाहती हूँ। भगवान शिव बोले तथास्तु आपकी इच्छा अवश्य पूरी होगी। कुछ दिनो के पश्चात अपने पिता दक्ष के विरुद्ध जाकर माता सती ने भगवान शिव से विवाह किया।

सती माता की मृत्यु कैसे हुई ? (Sati Ki Mrityu kaise Hui)

सती और शिव के विवाह के उपरांत दक्ष प्रजापति ने अपने घर में एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया। चूँकि माता सती ने अपने पिता की इच्छा के विरुद्ध जाकर अपना विवाह शिव से किया था तो राजा दक्ष से उन्हें इस यज्ञ में आमंत्रित नहीं किया। उस यज्ञ में सभी देवी देवता आये थे। जब सती माता को इसका पता चला तो उन्होंने शिव से कहा की मै अपने पिता श्री के यज्ञ आयोजन मे अवश्य जाऊँगी। भगवान शिव ने सती को बहुत मना किया लेकिन माता सती मानने को तैयार ही नही थी।

शिव ने अपनी हार मानी और सती माता की यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी। यज्ञ में पहुँचने के बाद सती माता ने अपने पिता से पूछा की आपने मुझे और शंकर जी को इस यज्ञ में क्यों निमंत्रण नहीं भेजा? 

दक्ष बोले कि तुम दोनो से मेरा कोई रिश्ता नही है। मै उस अवघड को पसंद नही करता और तुमने मेरी मर्जी के खिलाफ जाकर शादी की। इसीलिए तुम दोनो से मेरा कोई वास्ता नही है। प्रजापति दक्ष ने भगवान शिव को बहुत अपमानित किया। माता सती अपने पति शिव के अपमान को सहन न कर सकी। उन्होंने अग्नि देव का आवाहन करके अग्निदाह कर लिया। इस तरह से सती माता ने अपने प्राण त्याग दिए (Sati Mata Death Reason)।

शिव का तांडव (Shiv Tandava)

भगवान शिव को जब पता चला कि सती माता ने अपने प्राण त्याग दिए हैं तो वह दक्ष महाराज के यज्ञ में पहुंचे। वहां से सती माता का शव अपने कंधों पर उठाकर आसमान की ओर चले गए। आसमान में जाकर भगवन शिव तांडव करने लगे। तांडव इतना भयानक था कि सभी देवताओं को लगा कि अब तो पृथ्वी का अंत आ गया है। 

जब उन्हें कोई रास्ता नहीं सुझा तो वे सब भगवान विष्णु (Bhagwan Vishnu) जी के पास पहुंचे उन्होंने भगवान विष्णु जी को कहा कि आप ही कुछ कर सकते हो क्योंकि शिव भगवान अपना तांडव करने से नहीं रुक रहे और अगर ऐसा नहीं हुआ तो पूरी पृथ्वी खतरे में है। विष्णु भगवान जी ने सारी समस्या को समझा और फिर उन्होंने यह निर्णय लिया कि वे अपने सुदर्शन चक्र से सती माता जी के शव को टुकड़ों में बांट देंगे। क्योंकि जब तक उनका शरीर भगवन शिव के कंधो पर रहेगा तब तक शंकर भगवान तांडव करने से नहीं रुकेंगे। 

उन्होंने ऐसा ही किया और उससे सती माता के 51 टुकड़े हो गए और वह जगह जगह पर जाकर गिर गए। जहां जहां पर टुकड़े गिरे वहां वहां एक शक्तिपीठ बन गई। बहुत सी शक्तिपीठ भारत में है और कुछ भारत के बाहर।  नैना देवी, ज्वाला जी, कामाख्या माता, इन्हीं कुछ शक्तिपीठों में से एक हैं।

कुछ प्रश्न उत्तर (Question Answers About Mata Sati)

माता सती कौन थी ?
माता सती, राजा दक्ष की पुत्री थी। 

माता सती का विवाह किस से हुआ था ?
माता सती का विवाह भोले शंकर से हुआ था।

माता सती किसका रूप थी ?
माता सती दुर्गा माता का रूप थी।

सती माता के पिता का क्या नाम था ?
सती माता के पिता का नाम दक्ष प्रजापति था। 

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